तमिलनाडु के गांव आंधमान में जूते और चप्पल पहनना पूरी तरह से बैन है, और यह परंपरा यहाँ के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह गांव चेन्नई से लगभग 450 किलोमीटर दूर स्थित है और यहाँ की 130 परिवारों की छोटी सी बस्ती इस अनोखी परंपरा को बड़े गर्व से निभाती है। आंधमान गांव का यह रिवाज सिर्फ एक सांस्कृतिक आदत नहीं, बल्कि एक गहरी धार्मिक मान्यता और सामाजिक पहचान का हिस्सा है। यहाँ के लोग बिना जूते-चप्पल के हर काम करते हैं, और यह परंपरा उनके जीवन, विश्वास और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है।
गांव की गलियों से लेकर खेतों तक, हर जगह लोग नंगे पांव ही चलते हैं। गर्मियों में, जब जमीन बेहद गर्म हो जाती है, तो कुछ लोग चप्पल पहनते हैं, लेकिन यह केवल गर्मी से बचने के लिए होता है। बच्चों का स्कूल जाना भी इसी परंपरा के अनुसार बिना जूते-चप्पल के होता है। इस अद्वितीय परंपरा का पालन गाँववासियों द्वारा न केवल धार्मिक श्रद्धा के कारण किया जाता है, बल्कि यह उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक एकता को भी दर्शाता है।
सांस्कृतिक महत्व:
आंधमान गांव में जूते और चप्पल बैन करने की परंपरा धार्मिक विश्वासों से जुड़ी हुई है। यहाँ के लोग देवी मुथ्यलम्मा की पूजा करते हैं, जिन्हें वे अपने गांव की रक्षक मानते हैं। हर साल मार्च और अप्रैल के बीच देवी की पूजा के समय एक बड़ा महोत्सव मनाया जाता है। इस समय गांव में जूते-चप्पल पहनना पूरी तरह से मना होता है।
प्रैक्टिकल पहलू:
गर्मियों में गांववाले चप्पल का उपयोग करते हैं ताकि गर्म जमीन से बचा जा सके। बच्चे स्कूल भी बिना जूते-चप्पल के जाते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है बल्कि स्थानीय जलवायु और जीवनशैली के अनुसार भी है।
समाजिक पहलू:
गांव में आने वाले नए लोगों को इस परंपरा के बारे में सूचित किया जाता है और उन्हें इसका पालन करने की अपेक्षा की जाती है। यह परंपरा समाज में एकता और पहचान बनाए रखने में मदद करती है।
अध्यात्मिक मान्यता:
गांववाले मानते हैं कि अगर कोई इस परंपरा का पालन नहीं करता तो गांव में एक रहस्यमयी बुखार फैल सकता है। यह विश्वास लोगों को परंपरा के प्रति सख्त बनाए रखता है।
आधुनिक संदर्भ:
आज के आधुनिक समय में, आंधमान की यह परंपरा सांस्कृतिक संरक्षण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह दर्शाता है कि कैसे धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ रोजमर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करती हैं।
इस परंपरा के चलते आंधमान गांव भारतीय सांस्कृतिक विविधता का एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां परंपरा और विश्वास जीवन का हिस्सा हैं।